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शनिवार, 25 जून 2011

फ़ोटो एलबम देखते हुए

फ़ोटो एलबम देखते हुए

-मदन गोपाल लढ़ा-






श्वेत-श्याम चित्र् में
छुपे हुए हैं
कितने सारे रंग ।
देखते ही देखते
हरी हो जाती है याद
चेहरा सुर्ख गुलाबी
चमकने लगता है
आँखों का नीलापन ।
कहाँ से उतर आता है
रंगों का इंद्रधनुष
जब भी देखता हूँ
पुराना एलबम ।


2.
कसम से
मैं ही हूँ ये
यकीन नहीं हो रहा
पढो
फोटो के पीछे लिखा है
मेरा नाम
नाम के नीचे दिनांक
सचमुच
तब ऐसा ही लगता था
मैं ।
आइने में झाँकते हुए
पूछता हूँ खुद से
आखिर क्यों बदल गया इतना
सहसा
खुद को नहीं हुआ यकीन
अपना फोटो देखकर
पुराने एलबम में ।


3.
मानो थम-सा गया हो
वक्त का पहिया
या कोई खींच रहा है
पीछे
समय की सूई ।
अचंभित हूँ मैं
कैसे पहुँच गया
फिर उसी घडी में
जब उतारी थी फोटो
पुराने घर की बाखल में
दादा-दादी के साथ
हम तीनों भाई-बहन
यस
स्माइल प्लीज
ओ.के. !
क्लिक की आवाज के साथ
कैमरे में कैद हो गया
वह पल ।
चौंक उठता हूँ
क्या यह सपना है ?
गर सपना भी है
तो कितना सुहाना है !


4.
बेटा कहता है
ये मेरे पापा हैं
देखो कैसे लगते हैं
बिलकुल मेरे जैसे ।
बीवी चाव से दिखाती है
किटी पार्टी की महिलाओं को
पुराना एलबम
लजाकर कहती है -
‘ये उनकी फोटो है
कितने मासूम लगते हैं।’
मगर अम्मा चुप है
फोटो देखकर भी
नहीं फूटते उसके बोल
सोचती है
जो दिखता है फोटो में
अब कहाँ है वह ?

5.
बाइस लडके व सात लडकियाँ
बीच में गुरुजन
बी.ए. फाइनल इयर की
विदाई के मौके
खिंचवाया था यह ग्रुप फोटो ।
वक्त की गर्द ने
फोटो के साथ
धुंधला दिया है स्मृतियों को ।
मैं बताता हूँ चाव से
एक-एक सहपाठी का नाम
याद करके
बरबस ही ठहर जाता हूँ
उस चेहरे पर आकर
जिसे ताक रहा हूँ मैं
फोटो में भी ।
जानबूझकर
भूलने का दिखावा करता हूँ
मगर अंदर ही अंदर
हरा हो जाता है
कोई ठूंठ
फूटने लगती है
हरी-भरी शाखाएँ ।
सहसा
सिमट जाती हैं शाखाएँ
जब कहती है बिटिया
‘‘पापा अगली फोटो दिखाओ ना !’’

6.
पुराना एलबम देखने के बाद
लगता है
जैसे लौटा हूँ
अतीत की यात्र से ।
पत्थरों और शब्दों की तरह
फोटो में भी
बसता है इतिहास
पाकर नम निगाहों का स्पर्श
हो जाता है हरा
अतीत की किताब का
कोई पृष्ठ ।
फोटो की मार्फत
फिर-फिर लौटता है
इतिहास
वर्तमान में ।
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